प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
स्नेहलता रेड्डी (1932-1977) का जन्म एक भारतीय ईसाई परिवार में हुआ था, लेकिन उनकी सांस्कृतिक जड़ें बहुस्तरीय थीं। उनकी नानी कश्मीरी ब्राह्मण थीं, जबकि दादा-दादी तमिल मुदलियार समुदाय से थे। अंग्रेजी में शिक्षित होने के बावजूद, कॉलेज के दौरान उन्होंने औपनिवेशिक प्रभावों को अस्वीकार करते हुए भारतीय पहचान अपनाई: केवल साड़ी पहनना, बिंदी लगाना, और संस्कृत नाम "स्नेहलता" का उपयोग करना शुरू किया । उन्होंने प्रसिद्ध गुरु कित्टप्पा पिल्लई से भरतनाट्यम सीखा और कन्नड़ फिल्मों में अभिनय करते हुए कई पुरस्कार जीते।
राजनीतिक सक्रियता और गिरफ्तारी का कारण
1975 में इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू किए जाने के बाद, स्नेहलता ने मानवाधिकार हनन के खिलाफ आवाज उठाई। उनकी समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस से गहरी मित्रता थी, जो सरकार विरोधी गतिविधियों के लिए "वांटेड" थे। सरकार का मानना था कि स्नेहलता उन्हें शरण दे रही थीं। 2 मई 1976 को उन्हें "डायनामाइट केस" के तहत गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें संसद भवन को उड़ाने का झूठा आरोप लगाया गया (आईपीसी धारा 120, 120A) । हालाँकि, ये आरोप कभी साबित नहीं हो सके।
जेल में अमानवीय यातनाएँ
बेंगलुरु सेंट्रल जेल में उन्हें जानबूझकर घोर यातनाएँ दी गईं:
भौतिक स्थितियाँ : एक छोटी कोठरी में रखा गया, जहाँ शौच के लिए केवल एक छेद था। उन्हें सुरक्षाकर्मियों की निगाहों के सामने खुले में शौच करने को मजबूर किया जाता था ।
स्वास्थ्य उपेक्षा : अस्थमा के रोगी होने के बावजूद, उन्हें दवा या बिस्तर नहीं दिया गया। वे फर्श पर सोती थीं, जिससे उनकी बीमारी बढ़ गई। दो बार वे अस्थमा अटैक से कोमा में चली गईं, लेकिन जेल अधिकारियों ने अस्पताल में भर्ती करने से इनकार कर दिया ।
मनोवैज्ञानिक अत्याचार: अन्य कैदियों के सामने नग्न करके तलाशी ली जाती थी, जिसे उन्होंने अपनी डायरी में "मानवता के विरुद्ध" बताया ।
डायरी और प्रतिरोध की आवाज़
जेल में उन्होंने एक गुप्त डायरी लिखी, जिसमें महिला कैदियों के साथ हो रहे अत्याचारों को दर्ज किया:
"जब किसी को सजा मिलती है, तो वह पर्याप्त है। क्या मानव शरीर को भी अपमानित करना जरूरी है? ... हमारा उद्देश्य मानवता को उच्चतर ले जाना होना चाहिए।"
इस डायरी के आधार पर 2019 में एक डॉक्यूमेंट्री बनी। उन्होंने जेल में भूख हड़ताल की और महिला बंदियों के खाने व पानी की स्थिति में सुधार कराया ।
मृत्यु और विरासत
8 महीने की यातना के बाद, 15 जनवरी 1977 को उन्हें पैरोल पर रिहा किया गया। लेकिन स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण 20 जनवरी 1977 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई । उनकी बेटी जुई कुमार रेड्डी ने बताया कि जेल प्रशासन ने उनके परिवार को मिलने से रोका, और रिहाई के समय वह शारीरिक रूप से टूट चुकी थीं ।
ऐतिहासिक प्रतिध्वनि
नेताओं की गवाही: अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने बताया कि वे जेल में स्नेहलता की चीखें सुनते थे । समाजवादी नेता मधु दंडवते ने अपनी किताब में इन यातनाओं का उल्लेख किया।
राजनीतिक प्रतीक: 2023 में स्मृति ईरानी ने संसद में स्नेहलता का जिक्र करते हुए आपातकाल की क्रूरता को याद दिलाया ।
महिला संघर्ष का प्रतीक: वे इमरजेंसी के दौरान सड़कों पर उतरीं महिलाओं के लिए प्रेरणा बनीं, जिन्होंने अखबारों का वितरण और जागरूकता अभियान चलाया ।
स्नेहलता रेड्डी की कहानी न केवल राजनीतिक दमन की याद दिलाती है, बल्कि उस "ज्वाला" की भी है जिसने अंधकार में भी मानव गरिमा की मशाल जलाए रखी। उनकी डायरी और बलिदान भारतीय लोकतंत्र की स्मृति में एक अमिट अध्याय हैं।