प्रथस विश्व युद्ध के बाद शांति के लिए सम्मेलन ,Paris Peace Conference

 प्रथम विश्व युद्ध के बाद पेरिस शांति सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन 18 जनवरी 1919 से 21 जनवरी 1920 तक पेरिस, फ्रांस में आयोजित हुआ, जिसमें 32 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सम्मेलन के मुख्य परिणाम और तत्व इस प्रकार थे:



1. पृष्ठभूमि और उद्देश्य

युद्ध की समाप्ति के बाद विजयी राष्ट्रों ( ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका, इटली, जापान) ने यूरोप और विश्व को पुनर्गठित करने, युद्ध के लिए जिम्मेदार देशों को दंडित करने और भविष्य में शांति सुनिश्चित करने के लिए इस सम्मेलन का आयोजन किया था।  

अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने  " चौदह सूत्री कार्यक्रम " प्रस्तुत किया, जिसमें राष्ट्रों के आत्मनिर्णय, निरस्त्रीकरण और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर जोर दिया गया। 

2. प्रमुख संधियाँ और प्रावधान

सम्मेलन ने पराजित केन्द्रीय शक्तियों के साथ अलग-अलग संधियाँ संपन्न कीं:  

वर्साय की संधि (28 जून 1919):  

जर्मनी:  यह जर्मनी के साथ हस्ताक्षरित सबसे महत्वपूर्ण संधि थी। इसमें जर्मनी को युद्ध का एकमात्र दोषी ठहराया गया और कठोर शर्तें लगाई गईं:  

प्रादेशिक क्षति: अलसेस-लोरेन फ्रांस को वापस कर दिया गया; जर्मन भूमि पोलैंड को दे दी गई; सार क्षेत्र 15 वर्षों के लिए अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण में रहा।  

सैन्य प्रतिबंध: सेना की संख्या 100,000 तक सीमित; वायु सेना और पनडुब्बियों पर प्रतिबंध; राइनलैंड का विसैन्यीकरण।  

क्षतिपूर्ति: 132 बिलियन स्वर्ण मार्क (आज लगभग 269 बिलियन डॉलर) का भारी जुर्माना।  

जर्मनी ने इस संधि को " अपमानजनक " माना , जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के लिए मंच तैयार कर दिया।  

अन्य संधियाँ:  

सेंट-जर्मेन की संधि (1919): ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य का विघटन; हंगरी, चेकोस्लोवाकिया आदि नए देश बने।  

ट्रायोन की संधि (1920): हंगरी की सीमाएं काट दी गईं, रोमानिया और यूगोस्लाविया को भूमि दे दी गई।  

सेव्रेस की संधि (1920): ओटोमन साम्राज्य का विभाजन; तुर्की को छोड़कर मध्य पूर्व में ब्रिटिश/फ्रांसीसी प्रभाव क्षेत्र की स्थापना।  


3. राष्ट्र संघ की स्थापना

विल्सन के कहने पर "10 जनवरी 1920" को राष्ट्र संघ की स्थापना की गई , जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान और सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करना था।

जर्मनी और रूस को शुरुआत में सदस्यता नहीं दी गई थी, जबकि अमेरिका भी कांग्रेस के विरोध के कारण इसमें शामिल नहीं हुआ। यही कमज़ोरी आगे चलकर इसकी असफलता का कारण बनी।  


4. आलोचनाएँ और दीर्घकालिक प्रभाव

जर्मनी का अपमान : संधियों को " बलपूर्वक थोपा गया" बताया गया। जर्मन प्रतिनिधियों को वर्सेल्स में कांटेदार तारों से घिरे एक होटल में रखा गया और उन्हें शर्तों पर बहस करने का अवसर नहीं दिया गया।  

यूरोप का पुनर्निर्माण: ओटोमन, रूसी और ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्यों के पतन के बाद, कई नए देशों का गठन हुआ (जैसे पोलैंड, यूगोस्लाविया), लेकिन उनके भीतर जातीय तनाव बना रहा।  

द्वितीय विश्व युद्ध की नींव: जर्मनी में आर्थिक संकट और राष्ट्रवादी आक्रोश ने हिटलर के उदय को बढ़ावा दिया। जर्मन सेना ने "पीठ में छुरा"(Stab-in-the-back) मिथक फैलाया, जिसमें दावा किया गया कि सेना युद्ध नहीं हारी, बल्कि राजनीतिक नेताओं ने उसे धोखा दिया ।  


5. भारत और अन्य उपनिवेशों की लडाई में भूमिका   

भारत की अंग्रेजी सरकार ने मित्र देशों की ओर से 14 लाख भारतीय सैनिक भेजे, लेकिन पेरिस सम्मेलन में उसे स्वतंत्र प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। इससे उपनिवेशों में स्वतंत्रता आंदोलनों को बल मिला ।  


निष्कर्ष  

पेरिस शांति सम्मेलन ने ,आज की विश्व की राजनीतिक संरचना का आकार दिया, लेकिन इसकी पाबंदी की शर्तों, विजेताओं के बीच समझौतों और राष्ट्रवादी आकांक्षाओं की अनदेखी ने असंतोष पैदा किया। वर्साय की संधि विशेष रूप से विवादास्पद रही, जिसे इतिहासकार द्वितीय विश्व युद्ध का प्रमुख कारण मानते हैं । सम्मेलन की सबसे स्थायी विरासत राष्ट्र संघ की स्थापना थी, हालाँकि वह भविष्य के संघर्षों को रोकने में विफल रहा।

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